आयुष के चिकित्सकों को एलोपैथी की प्रैक्टिस का विरोध तेज
केंद्र सरकार की प्रस्तावित नेशनल मेडिकल कमिशन बिल (2017) का विरोध तेज हो गया है। इस बिल में प्रस्ताव रखा गया है कि आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी) के चिकित्सक एक ब्रिज कोर्स करके आधुनिक चिकित्सा (पढ़ें एलोपैथी) की प्रैक्टिस कर सकते हैं। इस प्रस्ताव के विरोध में न सिर्फ एलोपैथी के विशेषज्ञ सामने आए हैं बल्कि खुद होम्योपैथी चिकित्सकों ने भी इसका यह कहते हुए विरोध किया है कि इससे लंबे समय में होम्योपैथी को नुकसान होगा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी फीजिशियन के अध्यक्ष डॉक्टर ररामजी सिंह ने कहा है कि इस ब्रिज कोर्स का अतीतगामी कदम करार देते हुए कहा है कि होम्योपैथी अपने आप में संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है और अगर इस कोर्स की मंजूरी दी गई तो इससे सिर्फ होम्योपैथी ही नहीं पूरा आयुष तंत्र ही बिखर जाएगा।
वैसे केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध यह कहते हुए भी किया जा रहा है कि आयुष को आधुनिक चिकित्सा से मिलाने से एक नई पद्धति पैदा हो जाएगी और इसके जरिये इलाज करने के लिए क्लिनिकल ट्रायल जरूरी होगा और ऐसे में इस इलाज के लिए एथिक्स कमेटी की मंजूरी लेना भी अनिवार्य हो जाएगा।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने सेहतराग से बातचीत में कहा कि ऐसा अवैज्ञानिक मिश्रण पूरे मेडिकल सिस्टम के लिए घातक होगा और यह जनता के हित में भी नहीं होगा। इससे पिछले दरवाजे से झोलाझाप डॉक्टरों का प्रवेश मेडिकल फील्ड में हो जाएगा और इसलिए यह जनता का भला करने की बजाय नुकसान ही करेगा। सिर्फ यही नहीं यह ब्रिज कोर्स हर चिकित्सा पद्धति की पवित्रता को भी समाप्त कर देगा।
डॉक्टर अग्रवाल ने कहा कि हमारे देश में मेडिकल का पेशा अपने सबसे अंधेरे दौर से गुजर रहा है। मरीजों का भरोसा डॉक्टरों पर से धीरे धीरे उठता जा रहा है और छोटी छोटी बातें हिंसक रूप से ले रही हैं। ऐसे में सरकार का यह कदम इस अविश्वास को और बढ़ाने वाला होगा और इससे मेडिसीन के प्रैक्टिसनर्स की समस्याएं भी और बढ़ जाएंगी।
गौरतलब है कि सरकार मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन बनाने जा रही है और इसका विरोध तेज हो गया है। वैसे भारत सरकार ऐसा प्रयास पहले भी कर चुकी है। वर्ष 2005 में तब के स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास ने भी एमसीआई को खत्म करने की नाकाम कोशिश की थी मगर मेडिकल समुदाय के तगड़े विरोध के बाद उन्हें कदम पीछे खींचने पड़े थे। वैसे इस बार केंद्र सरकार अपने कदम को लेकर दृढ़ नजर आ रही है। आगे क्या होगा यह देखना रोचक होगा।
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